एक जमाने में म्यूजिक शेयर करने और सुनने की लोकप्रिय तकनीक (एम् पी थ्री फॉर्मेट ) को आधिकारिक तौर पर मृत घोषित कर दिया गया है। इस तकनीक की खोज जर्मन के फ्रानहोफर इंस्टीट्यूट ने की है और उन्होंने एम पी थ्री पेटेंट से संबंधित कुछ लाइसेंसिस को निरस्त कर दिया है। इसके अलावा 2017 में म्यूजिक सुनने और शेयर करने की बेहतरीन तकनीक उपलब्ध होने के कारण कंपनी इस तकनीक को संजो कर रखने में कोई रूचि नहीं दिखा रही है।
आज म्यूजिक सुनने और शेयर करने की सबसे एडवांस तकनीक एडवांस आडिओ कोडिंग (ए ए सी) बन चुकी है और इसी तकनीक के जरिए म्यूजिक को डाउनलोड करना और उसे सुनना काफी आसान हो गया है। इतना ही नहीं, टी वी ,रेडियो और कंप्यूटर पर म्यूजिक का आनंद लेने के लिए भी इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। रिर्पोट के मुताबिक यह कहा जा रहा है कि यह तकनीक एम् पी थ्री के मुकाबले कहीं बेहतर साबित हुई है।
क्या है एम पी थ्री का इतिहास
1980 के दशक में निर्देशक, फ्रानहोफर इंस्टीट्यूट और फ्रेड्रिच एलेग्जेंडर यूनिवर्सिटी ने मिल कर इस तकनीक की खोज की थी। इस तकनीक के जरिए किसी भी म्यूजिक को फाइल के असल साइज के दसवें हिस्से में सेव किया जा सकता था। इस तकनीक का सबसे खराब पहलु यह रहा कि इसने म्यूजिक इंडस्ट्री में पायरेसी को बढ़ावा दिया और फिर दुनियां भर में बड़े पैमाने पर म्यूजिक की चोरी होने लगी। इन सब चीजों से म्यूजिक कंपनियों को काफी घाटा हुआ और म्युजिक को ऑरिजनल सी डी की बजाए कंप्यूटर पर कॉपी कर के चलाया जाने लगा। उसके बाद 1990 के दशक में कंपनी ने इस तकनीक को अवैध तरीके से दुनिया भर के कंप्यूटर्स में पहुंचाने लगी। फिर बाद में इसी तकनीक का सहारा लेकर कई वेबसाइट्स ने म्यूजिक की चोरी और पायरेसी को बढ़ावा दिया। जानकारी के लिए बता दें कि इसी तकनीक के सहारे कंपनी ने म्यूजिक के डिजिटल राइट्स भी बेचे और फिर म्यूजिक की डिजिटल बिक्री शुरू हुई।
आज भले ही नई तकनीक के आने से एम पी थ्री को दफना दिया गया है लेकिन यह तकनीक 1980-1990 के दशक में म्यूजिक की तस्वीर बदलने वाली तकनीक के रूप में याद की जाएगी।
हर ताज़ा अपडेट पाने के लिए के फ़ेसबुक पेज को लाइक करें।
आज म्यूजिक सुनने और शेयर करने की सबसे एडवांस तकनीक एडवांस आडिओ कोडिंग (ए ए सी) बन चुकी है और इसी तकनीक के जरिए म्यूजिक को डाउनलोड करना और उसे सुनना काफी आसान हो गया है। इतना ही नहीं, टी वी ,रेडियो और कंप्यूटर पर म्यूजिक का आनंद लेने के लिए भी इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। रिर्पोट के मुताबिक यह कहा जा रहा है कि यह तकनीक एम् पी थ्री के मुकाबले कहीं बेहतर साबित हुई है।
क्या है एम पी थ्री का इतिहास
1980 के दशक में निर्देशक, फ्रानहोफर इंस्टीट्यूट और फ्रेड्रिच एलेग्जेंडर यूनिवर्सिटी ने मिल कर इस तकनीक की खोज की थी। इस तकनीक के जरिए किसी भी म्यूजिक को फाइल के असल साइज के दसवें हिस्से में सेव किया जा सकता था। इस तकनीक का सबसे खराब पहलु यह रहा कि इसने म्यूजिक इंडस्ट्री में पायरेसी को बढ़ावा दिया और फिर दुनियां भर में बड़े पैमाने पर म्यूजिक की चोरी होने लगी। इन सब चीजों से म्यूजिक कंपनियों को काफी घाटा हुआ और म्युजिक को ऑरिजनल सी डी की बजाए कंप्यूटर पर कॉपी कर के चलाया जाने लगा। उसके बाद 1990 के दशक में कंपनी ने इस तकनीक को अवैध तरीके से दुनिया भर के कंप्यूटर्स में पहुंचाने लगी। फिर बाद में इसी तकनीक का सहारा लेकर कई वेबसाइट्स ने म्यूजिक की चोरी और पायरेसी को बढ़ावा दिया। जानकारी के लिए बता दें कि इसी तकनीक के सहारे कंपनी ने म्यूजिक के डिजिटल राइट्स भी बेचे और फिर म्यूजिक की डिजिटल बिक्री शुरू हुई।
आज भले ही नई तकनीक के आने से एम पी थ्री को दफना दिया गया है लेकिन यह तकनीक 1980-1990 के दशक में म्यूजिक की तस्वीर बदलने वाली तकनीक के रूप में याद की जाएगी।
हर ताज़ा अपडेट पाने के लिए के फ़ेसबुक पेज को लाइक करें।
No comments:
Post a Comment