अज्ञात यात्रा पर, कुत्ते 600 किमी के लिए चला गया, बाद में दोस्त बन गया
एक कुत्ते और उसके मालिक के बीच के प्यारे रिश्ते की कई कहानियां आपने सुनी होंगी, जिन्होंने दोस्ती की एक अनूठी मिसाल भी कयाम की. कुछ सालों पहले एक हॉलीवुड फ़िल्म आई थी ‘Hachiko’, जिसमें एक डॉग का अपने मालिक के प्रति बेंतहा प्यार दिखाया गया था. लेकिन असल ज़िन्दगी में भी एक ऐसी डॉगी मोलू (फीमेल डॉग) है, जिसने एक अंजान तीर्थयात्री के संग 600 किलोमीटर की यात्रा की और दोस्ती की एक अनूठी मिसाल पेश की
आइये अब जानते हैं कि क्या है मोलू और उसके मालिक की कहानी.
मोलू एक फीमेल डॉग है. लोग इसके बारे में बताते है कि ये वो डॉगी है, जो एक तीर्थयात्री नवीन के साथ बिना किसी जान-पहचान के 600 किलोमीटर तक पैदल गई. नवीन ने मालू को मूकाम्िबका से सबरीमाला मंदिर तक की अपनी 600 किलोमीटर की पैदल यात्रा के दौरान देखा. उन्होंने जिस समय उसको देखा, तो देखकर चौंक गए. कारण था कि उनको इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि वो मालू अब उनकी जिंदगी भर की साथी बनने वाली है.
कैसे मिली नवीन को मोलू
सूत्रों के मुताबिक़, 38 वर्षीय नवीन जब अपनी 17 दिन की 600 किलोमीटर की यात्रा को ख़तम करके अपने घर वापस लौट रहे थे, उस समय भी वो मालू उनके साथ ही थी. इतना ही नहीं, मालू उस समय भी उनके साथ थी, जब उन्होंने 23 दिसंबर को सबरीमाला से वापस घर आने के लिए बस पकड़ी थी. बस में मालू उनके साथ उनके बगल की सीट पर बैठकर साथ में ही घर वापस आई.
कब शुरू हुई थी यात्रा
नवीन, केरला स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के एक कर्मचारी हैं. उन्होंने 7 दिसंबर को अपनी यह यात्रा शुरू की थी. अपनी यात्रा की शुरुआत से ही नवीन सड़क के कुत्तों से बचकर चल रहे थे, जो भी उनके आसपास आ रहे थे. बावजूद इसके पता नहीं कैसे और क्यों मालू उनको उन सब कुत्तों से बिल्कुल अलग लगी और उनके साथ रही.
एक इंटरव्यू के दौरान नवीन ने बताया कि जब अपनी यात्रा में अभी वो 80 किलोमीटर ही आगे बढ़े थे कि उनकी नज़र साथ-साथ चल रही मोलू पर पड़ी. फिर उन्होंने गौर किया कि वो तो उनके साथ कदम से कदम मिलाकर 20 मीटर की दूरी पर चल रही है. कई बार उन्होंने उसको भगाने की कोशिश भी की, लेकिन वो डर के कुछ सेकेंड रुकी तो ज़रूर, लेकिन वहां से लौटी नहीं. वो लगता साथ चलती रही. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि वो आगे चलते-चलते थोड़ा रुक जा रही थी और उसके बाद पीछे मुड़कर देखती थी. वो ऐसा व्यवहार कर रही थी मानों कि सही रास्ता बता रही हो. लोगों का भी कहना है कि वो आगे चलकर नवीन को रास्ता बता रही थी. उसकी समझदारी को देखकर कुछ देर बाद नवीन भी उसको फॉलो करने लगे और उसी के पीछे-पीछे चल दिए. नवीन ने बताया कि जब उन्होंने कोज्हेइकोडे पार किया, तो उनको इस बात का विश्वास हो गया कि अब ये उनका साथ नहीं छोड़ेगी. इतना ही नहीं यात्रा के दौरान जब भी नवीन खाना खाने या नहाने जा रहे थे, तो मालू उनके सामान की हिफाज़त भी कर रही थी. और रात में उनके बगल में ही सो भी जाती थी.
इसी के साथ नवीन बताते हैं कि वो अपनी यात्रा की शुरुआत रोज़ सुबह 3 बजे ही उठ कर करते थे और उनको समय से जगाने का काम मोलू करती थी. वो उनके पैरों को छत कर उनको जगा दिया करती थी. नवीन कहते हैं कि पता नहीं उस मालू का उनसे क्या रिश्ता था, जो वो इस यात्रा के समय उनको मिली और फिर उनके साथ ही हो ली. हालांकि यात्रा से वापस आने के लिए उनको एक स्थानीय अधिकारी की मदद लेनी पड़ी ताकि वो मोलू को अपने साथ ला सकें. उस वक़्त उस अधिकारी को नवीन ने मालू की पूरी कहानी बताई.
अधिकारी की मदद से मोलू आई साथ में
जब उस अधिकारी ने मोलू की कहानी सुनी तो वो भी आश्चर्यचकित हो गया और उसने बस में मोलू के लिए खास इंतजाम किया और नवीन को 460 रुपये की टिकट दी. ताकि मालू भी उनके साथ सोते हुए आराम से जा सके.
आखिर में नवीन बताते हैं कि सफर के दौरान मालू इतनी थक चुकी थी कि वो पूरे रास्ते बस में सोते हुए आई. यहां तक कि वो रास्ते में वो एक बार भी नहीं उठी. अब आपको बता दें कि 600 किलोमीटर की यात्रा में नवीन की साथी बनी मोलू अब नवीन के साथ उनके घर पर ही रहती है. नवीन ने उसके लिए एक लकड़ी का एक बड़ा सा घर भी बनाया है.
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